Thursday, June 8, 2023

छवि बदलते कुछ ब्यूरोक्रेट्स



वेद विलास उनियाल

कोई भी सत्ता इस बात पर लोगों के मन में प्रभाव जताती है कि उसमें नौकरशाही किस तरह काम कर रही है। बेशक लोकतंत्र के ढांचे में योजनाएं और नीतियां बनाना शासकों का दायित्व है लेकिन उसे धरातल पर उतारने की अहम जिम्मेदारी अधिकरियों की होती है। अच्छे प्रशासकों के बदौलत कोई भी राज्य अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की सोच सकता है। अब नए दौर में लोग केवल राजनीतिक दलों के कामकाजों का ही मूल्यांकन नहीं करते बल्कि राज्य के अहम पदों और मंडल जिला स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारियों के कामकाज और कार्यशैली पर उनकी निगाह रहती है। बेशक आम लोगों को यह ताकत  मिली है कि अपने मत से वह राजनीतिक दलों या जनप्रतिनिधियों के बारे में कोई फैसला ले सकें लेकिन प्रशासकों के लिए किसी तरह के निर्णय का उसे अधिकार नहीं है.। लेकिन  लोग विभिन्न मंचों पर  अपनी प्रतिक्रिया से अब जताना नहीं भूलते कि किस अधिकारी के प्रति उनकी  किस तरह की सोच है।

 ऐसे में अधिकारी स्तर पर किसी फेरबदल पर लोग अपनी भावनाओं का इजहार भी कर देते हैं। रुद्रप्रयाग जिले में जहां वहीं के डीएम मंगेश घिल्डियाल की बदली पर लोग दुख मनाते दिखे वहीं उन्हीं लोगों ने नई डीएम वंदना चौहान का स्वागत भी खुले दिल से किया । आम तौर पर अंग्रेजों के प्रशासनिक ढांचे की शैली में ही लोग जिलाधिकारियों को देखते आए थे । इस लिहाज से मंगेश घिल्डियाल, दीपक रावत  स्वाति भदौरिया, आशीष चौहान जैसे युवा आईएएस अधिकारियों ने उस छवि को बदलकर लोगों के बीच जाने की एक नई शैली विकसित की। कुछ लोगों को लग सकता है कि बडे स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों को आम लोगों से एक दायरा जरूर बनाकर रखना चाहिए । लेकिन देखा यही गया कि ये तमाम आईएएस अधिकारी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए हैं। जब तक कोई अधिकारी जमीनी स्तर पर कामकाज नहीं करें केवल विडियो बनाकर ही कोई अधिकारी पापुलर नहीं हो सकता। इसी तरह पौडी के डीएम धीरज गर्ब्याल ने जिस तरह पौडी में सेब के बागवान लगाने के लिए युवाओं को प्रेरित किया और साथ ही जिले में कई नए कामों को दिशा दी उसे लोग काफी सकारात्मक ढंग से ले लिया है। स्वाति भदौरिया आशीष चौहान जैसे जिलाधिकारी और अरुण मोहन जोशी जैसे आईपीएस अपनी खास कार्यशैली के लिए लोगों के मन में है। हाल के समय में प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति लोगों के निजी अवलोकन का यह तरीका कहीं न कहीं नौकरशाहों को भी मंथन करने का अवसर देगा। अब वो समय चला गया है कि जब लोग केवल अपने वोट के अधिकार के नाते केवल सियासी दलों की ही समीक्षा करते थे या पक्ष विपक्ष का ही अवलोकन करते थे। बदले समय में लोग नौकरशाही को भी अपने पैमाने पर कस रहे हैं। यही कारण है कि किसी क्षेत्र के लोगों की किसी अधिकारी के प्रति प्रतिक्रिया किसी घटनाक्रम में तुरंत देखने को मिल जाती है। रुद्रप्रयाग का जनमानस अगर वंदना चौहान के आने पर खुशी जताता है तो इसकी वजह यही है कि उसे पहले से अहसास है कि जीवन की किन चुनौतियों को झेल कर अपने आत्मविश्वास से वंदना चौहान ने आईएएस की परीक्षा पास की है। कहीं न कहीं लोगों के मन में विश्वास है कि नई डीएम भी जिले को संवारने में अपना बेहतर योगदान देंगी।

 उत्तराखंड जैसे प्रदेश में जिसकी अपनी अपेक्षाएं हैं और जहां कई तरह की विषम भौगोलिक परिस्थितियां है वहां राज्य के उत्थान के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली पर काफी दारोमदार है। शुरू से ही कहा गया कि यह राज्य जिन परिस्थितियों में  उसमें इसे विकसित करने के लिए शासन प्रशासन और लोगों का सहयोग हर कडी जिम्मेदार है। इस मायने में देखा गया कि सत्ता बदल बदल कर राजनीतिक दलों के पास आती रही लेकिन प्रशासन का ढर्रा लगभग वही रहा। इसमें जिस तरह के आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता थी उस दिशा में बहुत काम नहीं हो सका। लगभग उप्र की शैली में ही यहां का प्रशासन चला। लेकिन अच्छा संकेत है कि हाल के समय में जिस तरह कुछ प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए कुछ अलग पहल भी की है। उसका लोगों ने स्वागत किया है। स्वाति भदोरिया ने जिस तरह अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढाया उसकी सराहना हुई। आशीष चौहान जिस तरह पैदल मीलों चलकर एक गांव पहुंचे वह नए बदलते माहौल का प्रतीक है। वरना कमिश्नर डीएम को लेकर लोगों के मन में एक साहब वाली छवि बनी हुई है। डीएम यानी  जिले के वो अधिकारी जिन्हें सबसे काम लेना है। ऐसे में इन नए युवाओं ने उन धारणाओं को तोडते हुए ऐसी पहल की है जो प्रशासन और समाज के बीच नए संबंध स्थापित कर रही है। ऐसे में जनता के बीच संदेश जा रहा है कि प्रशासन केवल नियम कानून लादने और टैक्स वसूलने नहीं बल्कि वह समाज में बेहतर सामंजस्य के लिए भी है । खासकर प्रशासन में बहुत व्यवहारिक लोग दायित्व निभा रहे होंगे तो निश्चित सरकार के जरिए तय किए काम और लक्ष्यों के पूरा होने में मदद ही मिलती है। एक तरह की पारदर्शिता भी बनी रहती है।

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