देश में हाल के दिनों में बच्चों में आत्महत्या और मानसिक तनाव के बढ़ते मामलों ने चिंताएं गहरा दी हैं। इसी गंभीर मुद्दे को देखते हुए एम्स नई दिल्ली ने मेंटल वेलनेस को प्राथमिकता देने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की है। स्कूलों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए MET (Mind Activation Through Education) कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। यह कार्यक्रम सीबीएसई के सहयोग से फिलहाल दिल्ली-NCR और उत्तर-पूर्वी राज्यों के स्कूलों में चलाया जा रहा है।
क्या है MET प्रोग्राम?
Mind Activation Through Education (MET) एक ऐसा मॉडल है जो इलनेस नहीं, वेलनेस पर काम करता है। इसका उद्देश्य है बच्चों में हाइपरटेंशन, ओबेसिटी, बिहेवियरल इश्यू, और डायबिटीज जैसी समस्याओं को धीरे-धीरे कम करना है। इस कार्यक्रम का प्रमुख हिस्सा है “MET Five” का कॉन्सेप्ट, जिसके तहत बच्चों को कम से कम पांच असली दोस्त बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है, ताकि वे अपनी भावनाएं खुलकर साझा कर सकें।
“MET Five” का संदेश स्पष्ट है— “रील नहीं, रीयल दोस्त बनाओ।”
MET को कक्षा 6वीं और 7वीं के छात्रों के लिए शुरू किया गया है। दिल्ली-NCR और मेघालय के 50 स्कूलों का चयन किया गया है। स्कूल काउंसलरों को पांच दिन की विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। प्रशिक्षित काउंसलर स्कूलों में जाकर बच्चों के व्यवहार का अवलोकन करते हैं। फिर इन आंकड़ों की समीक्षा कर समाधान और रणनीतियां बनाई जाती हैं। वर्तमान में यह पहल 9 स्कूलों में सक्रिय रूप से चल रही है।
“बच्चों का मानसिक विकास पूरी तरह परिवार के माहौल पर निर्भर करता है।” पति-पत्नी के बीच तनाव या विवाद का सीधा असर बच्चों के आत्मविश्वास और मानसिक स्थिति पर पड़ता है। इसका प्रभाव केवल बच्चों तक सीमित नहीं, बल्कि माता-पिता की हेल्थ, ब्लडप्रेशर, और फर्टिलिटी पर भी पड़ता है। MET के तहत माता-पिता को भी परिवारिक तनाव कम करने के तरीके सिखाए जा रहे हैं।
“बोरिंग जरूरी है। दिमाग को रेस्ट चाहिए, तभी वह क्रिएटिव सोच पाता है।” अधिक उत्तेजना, लगातार स्क्रीन टाइम और कभी न रुकने वाली भागदौड़ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को थका देती है। थोड़ा अकेले रहना, शांत रहना और बिना गैजेट वाले पल बिताना मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दा भी है।
2012 से 2030 के बीच मानसिक बीमारियों की वजह से भारत को 1 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान होगा। भारत में हर 1 लाख आबादी पर कम से कम 1 मनोचिकित्सक होना चाहिए, जबकि वास्तविक संख्या सिर्फ 0.7 है। डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन है कि यह संख्या 3 मनोचिकित्सक प्रति 1 लाख होनी चाहिए। इस कमी के कारण 70–90% लोगों को मानसिक स्वास्थ्य उपचार नहीं मिल पाता।